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एक है चायवाला और एक है वेट्रेस: कैसे चुन सकते है, हम इन्हे?

My Thoughts....मेरे विचार
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पिछले कुछ दिनो से सोशल मीडिया मे कुछ लोग बड़ी शान से इस बात को शेयर कर रहे है की हमारे देश के एक नेता अपने पिछले जीवन मे चाय वाले थे और दूसरी वेट्रेस, मुझे पता नहीं सच्चाई क्या है, और ना ही आप यह समझे की यह कोई राजनीतिक लेख है।  यह बात उनके सम्मान के लिए नहीं, अपमान और उपहास के लिए कही जा रही है। यह साबित करती है, की हमारे “वसुधेव कुटुंबकम” कहलाने वाले समाज मे  चाय बेचने वाले व्यक्ति या होटल मे काम करने वाले को किस नजर से देखा जाता है, और उनका क्या स्तर है। मेरा मानना है की, सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले और इन शब्दो को यहा लाने वाले ज़्यादातर लोग देश के बुद्धिजीवी वर्ग से आते है या वे समझते है की वो बुद्धिजीवी है। पर मुझे इसमे थोड़ा संसय लगता है। विश्व मे तो यह तो पता था, की हम जाती और धर्म  के आधार पर भेदभाव करते है, पर चलिये इस बहाने यह बात भी पता चल गई की हमारे यहा व्यवसाय को भी उच-नीच की दृष्टि से देखा जाता है।  हमारे समाज मे इज्जत उसी की होगी जो या तो अधिकारी होगा या पैसा वाला, पैसा चाहे कही से भी आए, हमे इससे फरक नहीं पढ़ता। हम मानते है की मेहनत से चाय बेचना, आपके झूठे बर्तनो को उठाना, आपके घर को साफ करना सबसे गंदा काम है। कही बैठा होगा ईश्वर तो हसता होगा और कहता होगा की कैसे है ये लोग जो मुझे तो कहते है की हे ईश्वर इस धरती पर गंदगी फैलाने वाले पापियो को खत्म कर दे, इस संसार की गंदगी को खत्म  कर दे। परंतु जो धरती पर उनके द्वारा फैलाने वाली गंदगी को दूर करते है, वही लोग उन्हे इतने असम्मान से देखते है। एक तरफ ईश्वर गंदगी हटाये तो पूज्यनीय है, परंतु वही काम यदि मानव करे तो वह घृणित है। आपके किसी से राजनीतिक और वैचारिक मतभेद हो सकते है, और आप उससे सहमत  नहीं है तो आप उसका विरोध कर सकते है ,और हर भाषा मे ऐसे अनेकों शब्द मिल जायेंगे जिसका उपयोग कर आप किसी व्यक्ति का और उसके विचारो का समर्थन या विरोध कर सकते है। परंतु यदि हम किसी व्यवसाय, जाती, धर्म या शारीरिक विकलांगता का उपयोग किसी के अपमान के लिए करे तो मुझे नहीं लगता है की यह तार्किक है और मानवता या ईश्वरवादी विचार है। जब यह सोच हम जैसे पढे लिखे बुद्धिजीवी लोगो की होगी तो अनपढ़ व्यक्ति से आप क्या अपेक्षा करेंगे। आप के व्यवसाय या पद के अनुसार आपको पैसा मिलता है, और आपकी बुद्धिमता के आधार पर आपकी बातों को महत्व। परंतु एक बात है जिस पर हर व्यक्ति का समान अधिकार होता है वह है सम्मान। चाहे वह आपके घर पर काम करने वाला व्यक्ति हो या देश का प्रधान मंत्री, एक मानव होने के नाते सबके मन मे समान भाव होते है और सब सामने वाले से चाहते है की वह उसकी भावनाओ का सम्मान करे। एक बुद्धिजीवी, मानवतावादी  और सच मे ईश्वर को मानने वाले व्यक्ति से इस बात की अपेक्षा की जा सकती है, की वह सबको सम भाव से देखे, और सबका सम्मान करे। भगवान ने राम और कृष्ण के रूप मे इस धरती पर अवतरित होकर इस बात को लोगो के बीच मे उदारण के रूप मे दर्शाने की कोशिश भी की। परंतु हमारे दिमाक पर इन अवतरित पुरुषो की अपेक्षा देश पर शासन करने वाले राजा और अंग्रेज़ो का ज्यादा प्रभाव है। पता नहीं कब हम इनको अपने दिमाक से निकाल पायेंगे, कब हमारे मस्तिष्क से यह सामंतवादी मानसिकता जायगी। कब हम मानेगे की सम्मान पर सबका उतना ही हक़ है जितना की आपका। आप किसीका  अपमान उसके व्यवसाय, जाती धर्म या शारीरिक अक्षमता के कारण नहीं कर सकते है, यदि आप ऐसा करते है, तो ईश्वर के नजर मे अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय देते है। मान लीजिए आपने एक पेंटिग बनाई और कोई व्यक्ति  आकर उसका उपहास उढ़ाता है या अपमान करता है, तो वह किसका अपमान होगा ?  पंटिंग का या पेंटिग को बनाने वाले का? जिस प्रकार से पेंटिग आपकी कृति है उसी प्रकार से इस संसार की  हर वस्तु ईश्वर की कृति है। उसी ने हमे अपनी ईक्छा के अनुसार विश्व के विभिन्न क्षेत्रो मे , जाती मे, धर्म मे, शारीरिक क्षमता या अक्षमता के साथ  इस धरती पर अवतरित किया है। जब हम उसकी कृति का अपमान करेंगे तो बताइये किसका अपमान होगा? जब आपके एक छोटे से कृत्य का उपहास उड़ाने से आपको इतनी तकलीफ होती है, तो उसे कितना दुख होगा, थोड़ा सोचिए। अभी हाल ही मे पड़ोसी देश के किसी नेता ने कहा की मै लोगो के  बीच मे भेष बदल कर जाना चाहता हु, एक बढ़े ही गंभीर और बुद्धिजीवी पत्रकार ने इसका बढ़ा अच्छा सा उत्तर दिया, उन्होने कहा की यह मानसिकता बताती है की वह अपने आप को सुल्तान समझते है। वैसा ही हमने और हमारे पूर्वजो ने इन राजाओ और अंग्रेज़ो का विरोध तो किया, परंतु मन के किसी कोने मे उनकी मानसिकता को बसा भी लिया, और उन्ही के जैसे व्यवहार को अपना लिया। अगर आप यह सोचते है की यह मानसिकता सिर्फ पैसे वाले और  उच्च लोगो मे ही है तो आपका अनुमान बिलकुल गलत है। आज समाज के ज़्यादातर लोग, किसी भी प्रकार की ताकत आने के बाद वैसा ही व्यवहार करते है जैसा की दूसरे। जिन बाबाओ को आप बहुत ज्यादा मानते है, आपने कभी उनके या उनके द्वारा प्रचारित फोटो पर ध्यान दिया है, कभी किसी नेता को तो कभी किसी व्यवसायी को उनके सामने नतमस्तक होते दिखाया जाता है। यह उनके अंदर का छुपे दंभ को दर्शाता है, वह बताना चाहते है, की देखो मेरे आगे ये भी सिर झुकाते  है। आप सोचिए किसी सच के संत के लिए राजा और रंक मे अंतर हो सकता है। हेयवादी, सामंतवादी मानसिकता और अंग्रेज़ियत इस कदर हम पर  हावी हो चुकी है की की हम सामने वाले व्यक्ति का तिरस्कार और उसके गुणो का अपमान उसके जाती, कपड़े, शारीरिक स्थिति,  धर्म और यहा तक की भाषा बोलने के क्षमता के आधार पर कर देते है। याद रखिए कोई भी काम बुरा नहीं होता सोच बुरी होती है, हममे से हर कोई जंगल मे रहने वाले आदिवासियो की संतान है, और चाय बेचने वाले और होटल मे काम करने वाले उन जंगलियों से कही आगे। जाती, धर्म और किसी के व्यवसाय का उपयोग गाली देने लिए ना करे, यह किसी के सम्मान से जुड़ा हुआ है।  विचारो के विरोध के लिए शब्दो की कमी नहीं है।

जय हिन्द

डॉ. अजय सिंह नागपुरे

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