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नफरत है मुझे हिन्दी से

My Thoughts....मेरे विचार
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जी हा शीर्षक सत्य है, इस सत्य से मै और मेरे जैसे हजारों लोग अक्सर गुजरते हैं। मुझे अँग्रेजी भाषा का उतना अधिक ज्ञान नहीं है, इसका अहसास मुझे यहाँ अमेरिका मे रहते हुए कभी नहीं होता, परंतु जब भी मैं भारत की धरती पर उतरता हूँ, तो पता नहीं क्यो मेरी अभिव्यक्ति को मेरी योग्यता का आधार मान लिया जाता है? क्यो मुझे उनकी नज़रों मे मेरी भाषा के लिए हीनता का यह भाव दिखाई देता है। कभी उनकी नज़रे मुझे गवार की,  तो कभी देहाती की संज्ञा देती हुई प्रतीत होती है। जब हम जाती, धर्म और रंग के भेदभाव को अमानवीय करार देते है, तो मैं उन बुद्धिजीवियों से पूछना चाहता हुं, क्या भाषा के आधार पर उनका यह भाव मानवीय है?

पता नहीं भारत के पहले गणितग्य आर्यभट्ट को अँग्रेजी आती थी या नहीं? खैर, जर्मनी और जापान को अँग्रेजी नहीं आती है, फिर भी वह अनुसंधान और योग्यता मे कही आगे है, यह साबित करता है, की भाषा आपकी योग्यता को निर्धारित नहीं कर सकता, और यदि अब भी आपको लगता है की यह जरूरी है, तो आप दीजिए पूरे देश के बच्चों को एक ही स्तर का प्रशिक्षण।

आपने कभी सोचा है, अँग्रेजी आज क्यो सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि यह हमारी नज़रों मे जो श्रेष्ठ है, उनके द्वारा बोली जाती है।  इसमे कोई बुराई नहीं है, की हम किसी को श्रेष्ठ माने और उनसे सीखें परंतु बुराई जब पैदा होती है, जब हम खुद को हिन मान बैठते हैं। थोड़ा सा तर्क लगाये, अगर पूरे विश्व पर अंग्रेज़ी की जगह जर्मन शासन करते और आज अमेरिका की जगह अगर जर्मनी होता तो, हमारे लिए श्रेष्ठ भाषा क्या होती। मैंने यहाँ जानबूझकर जर्मनी को उदाहरण दिया, क्योंकि अगर मैं हिन्दी, तमिल, तेलुगू या भोजपुरी कहता तो आप इस बात पर मुस्कुरा देते। इस आधार पर आप सोचिए की आप कहा है?

ईश्वर की कृपा से मुझे भारत और विश्व के कुछ विद्वानों से भाषा के विषय मे अपनी जिज्ञासा शांत करने का मौका मिला, भाषा के विषय मे सभी का एक ही मत था, की यह आपकी अभिव्यक्ति का साधन है। सफलता और योग्यता के लिए भाषा नहीं दृढ़ संकल्प होना चाहिए।  हाँ,  परंतु हमे हर भाषा को समान आदर देना चाहिए जो की स्वाभाविक है, परंतु दुख जब होता है, जब भाषा को योग्यता का आधार बना दिया जाता है

भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा मे हिन्दी के साथ भेदभाव का कारण क्या है? मैं नहीं जानता हुं परंतु जहाँ तक लोगो को समझा है, अक्सर हम कुछ उदाहरण के आधार पर सभी का व्यापकीकरण कर देते है। उदाहरण के रूप मे हम किसी देश, राज्य, जाती या धर्म के एक व्यक्ति से मिलकर संपूर्ण देश,राज्य, जाती या धर्म के लिए एक धारणा बना लेते है। प्रतीत होता है, संघ लोक सेवा आयोग भी इसी मानसिकता से गुज़र रहा है, यहाँ पर मुझे उनकी तार्किकता और योग्यता पर संशय होता है।  इस निर्णय के आधार पर उन्होने एक बात तो साबित कर ही दी है की, आज तक जीतने भी अधिकारियों ने अपनी मात्र भाषा को लेकर यह परीक्षा उत्तीर्ण की है, उनकी नज़रों मे वे योग्यता की कसोटी पर खरे नहीं नहीं उतरते है। अगर उनके इस निर्णय का आधार कुछ उदाहरण है, तो हम भी अपने पक्ष मे उनसे ज्यादा उदाहरण प्रस्तुत कर सकते है।  परंतु यहाँ प्रश्न वाद विवाद का नहीं है, देश के भविष्य का है। इस निर्णय से संघ लोक सेवा आयोग ने यह जाहिर कर दिया की, अब देश मे सिर्फ और सिर्फ अभीजात्य  वर्ग ही शासन करने की योग्यता रखता है। सारी कमियाँ तो हम जैसे सरकारी विद्यालय मे पढ़ने वाले लोगो  मे है। हम खस्ताहाल स्कूलों मे पढ़ते है, बिना निजी शिक्षक की सहायता के गणित विज्ञान उनके बराबर ही नंबर लाते है, फिर भी हम अयोग्य है

अक्सर हमे शिष्टाचार और आदर की बाते हमारे आस पास सुनाई दी जाती है। परंतु भाषा का उपयोग करते समय हम इस शिष्टाचार को अक्सर भूल जाते है। भाषा आपके विचारों की अभिव्यक्ति है, और भाषा सार्थक तब होती है, जब आप आपके विचार सामने वाले तक उसी रूप मे पहुचे जिस रूप मे उसे समझ आए, परंतु प्रायः हमारा ध्यान अभिव्यक्ति से ज्यादा अपने आप को सामने वाले के सामने उचा बताने मे होती है। हमे पता होता है की सामने वाले व्यक्ति को वह भाषा नहीं आती और उसे जो समझ आती है, वह भाषा हमे आती है, फिर भी हम अँग्रेजी का प्रयोग करते है।  मुझे पता नहीं इस विषय मे आप क्या सोचते है, परंतु मुझे यह उचित प्रतीत नहीं होता।

जय हिन्द

अजय सिंह नागपुरे

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