Menu
blogid : 12229 postid : 834215

भाषा से धर्म बनता है

My Thoughts....मेरे विचार
My Thoughts....मेरे विचार
  • 18 Posts
  • 36 Comments

किसी भी धर्म के उद्भव में भाषा का अत्यधिक महत्व होता है, या कहो भाषा ही कालांतर में धर्म को परिभाषित करने लग जाती है। उदारण के तौर यदि हमारे देश की भाषा हमेशा से ही अंगेरेजी रहती तो, हम भगवान को भगवान न कहकर गॉड के नाम से ही जानते, और हमारे नाम पीटर, जॉन इत्यादि होते। वही अगर सम्पूर्ण विश्व की भाषा हिन्दी होती तो विश्व मे कही भी किसी धर्म का उद्भव होता, तो वह अपने इष्ट को भगवान ही कहते, चूंकि हिन्दी भाषा मे वही शब्द आराध्य के लिए बना है। जहा भी धर्म का उद्भव होता है, उस क्षेत्र की भाषा के अनुरूप आराध्य को संबोधित किया जाने लगता है। धर्म के अनुसार ईश्वर और हमारे नाम सिर्फ और सिर्फ भाषा का खेल है, और कुछ नहीं। ठीक उसी प्रकार जैसे आम को अँग्रेजी मे Mango, अरेबिक मे مانجا, फ्रेंच मे Mangue कहते है, परंतु जब आप उस आम को खाते है, तो स्वाद वही रहता है, चाहे आप उसे दीपावली मे खा रहे हो या क्रिसमस मे, या आप उसे हिंदुस्तान मे उसे खा रहे हो या किसी और देश मे। अब आप पर निर्भर करता है की आप इस विषय मे किस तरह से सोचते है।
अजय सिंह नागपुरे

Tags:                  

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply