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पी एम 2.5 हमारी आस पास की हवा में घुला एक ऐसा अदृश्य जहर हैं, जो प्रति वर्ष विश्व के लगभग 80 लाख लोगो की मौत का कारण बनता हैं। हिंदुस्तान में हर वर्ष लगभग 700,000 लोग सिर्फ पी एम 2.5 से होने वाली बीमारियो के कारण मारे जाते हैं। देश मे सबसे ज्यादा मौते हाई ब्लड प्रेशर के कारण होती हैं, तथा घर के अंदर खाना पकाने के लिए लकडियो, गोबर के उपले, व केरोसिन से निकलने वाले धुंए से उत्पन्न पी एम 2.5 मौत दूसरा सबसे बढ़ा कारण हैं। सिगरेट पीना और खाने मे पोषक तत्वों की कमी देश मे होने वाली मौतों का तीसरा व चौथा सबसे बढ़ा कारण हैं। पाँचवा बढ़ा कारण बाहर की हवा में उपस्थित पी एम 2.5 हैं, जो की गाड़ियों, फैक्टरी और कचरा जलाने से निकलने वाले धुंए से आता हैं।
पी एम 2.5 कैसे हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता हैं? इस विषय मे कई लोग जानते होंगे। परंतु जो नहीं जानते उनकी जानकारी के लिए बताना चाहूँगा। पी एम 2.5 वायु प्रदूषक तथा हवा में पाये जाने वाले अत्यधिक छोटे कण होते हैं, जिनका आकार 2.5 माइक्रोन से कम होता हैं। माइक्रोन, इंच, सैंटीमीटर और मीटर की तरह लंबाई मापने की एक इकाई होती हैं। एक इंच में लगभग 25000 माइक्रोन होते हैं। एक पी एम 2.5 के कण का आकार हमारे सर के बाल से लगभग 30 गुना कम होता हैं।
पी एम 2.5 के स्रोत
पी एम 2.5 हवा में किसी भी प्रकार के पदार्थ को जलाने से निकलने वाले धुंए से आता हैं। वाहनों के इंजन में पेट्रोल और डीजल के जलने से धुआं निकलता हैं, और इस धुंए में विभिन्न प्रकार के प्रदूषक होते हैं, जिनमें पी एम 2.5 भी एक होता हैं। लकड़ी, गोबर के उपले, कोयला, केरोसिन तथा कचरा जलाने, फैक्टरी, सिगरेट से निकलने वाला धुंए में पी एम 2.5 की मात्र अत्यधिक होती हैं।
पी एम 2.5 का आपके स्वास्थ्य पर प्रभाव
चूंकि पी एम 2.5 आकार में अत्यधिक छोटे होते हैं, इसलिए यह बड़ी सरलता से हमारी साँस द्वारा हमारे फेफड़ों तक पहुच जाते हैं। पी एम 2.5 कई प्रकार से हमारे स्वास्थ्य पर असर डालते हैं। कई बार अचानक छींक, खांसी, आंखों, नाक, गले और फेफड़ों में होने वाली जलन का कारण पी एम 2.5 भी हो सकता हैं। लंबे समय तक पी एम 2.5 की अधिकता वाली प्रदूषित हवा मे रहने से अस्थमा, फेफड़ों तथा हृदय संबंधी बीमारी होने की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती हैं, तथा यही बीमारिया मौत का कारण बनती है। पी एम 2.5 से होने वाली बीमारी का खतरा बूढ़े और बच्चो में अत्यधिक होती हैं।
भारत में शहरों में रहने वालों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं। वाहनों, फैक्टरी तथा कचरा जलाने से निकलने वाला धुआँ शहरों में पी एम 2.5 का मुख्य स्रोत होता हैं। आज विश्व के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में भारत के 14 शहर आते हैं। देश के ज़्यादातर शहरो मे पी एम 2.5 का स्तर सरकार द्वारा निर्धारित किए गए मानको से अक्सर जादा पाया जाता है।
ऐसा नहीं हैं की शहर के ही लोग ही पी एम 2.5 से प्रभावित हो रहे हैं, और गांवों में रहने वाले इससे सुरक्षित हैं। आज देश के सिर्फ 28% घरों में ही ऐलपीजी गैस द्वारा खाना बनाया जाता हैं, जिससे काफी कम मात्र में पी एम 2.5 निकलता हैं। देश के 50% घरों में आज भी खाना लकड़ी से ही बनता हैं। 21% घरों में गोबर के उपले, कोयला और केरोसिन का उपयोग खाना बनाने के लिए क्या जाता हैं। लकड़ी, गोबर के उपले, कोयला और केरोसिन के उपयोग करने वालों की संख्या देश के गांवों में सबसे अधिक हैं, जिसके धुए से निकलने वाला पी एम 2.5 देश में होने वाली मौतों का दूसरा बढ़ा कारण हैं।
कैसे बच सकते है पी एम 2.5के प्रदूषण से
सरकार तथा अन्य संस्थाएं हवा में उपस्थित इन प्रदूषक को कम करने के लिए अपने स्तर पर प्रयासित हैं। परंतु हम सभी द्वारा किए गए थोड़े बहुत प्रयास, पी एम 2.5 के प्रभाव को काफी हद तक कम कर सकते है। यदि हमें अपने और अपने बच्चो को स्वस्थ देखना हैं, तो हमें हर स्तर अपने आस पास की हवा को सुरक्षित करने का प्रयास करना होगा। नीचे लिखे बातों का पालन कर पी एम 2.5 होने वाले हानिकारक प्रभावों से अपने और अपने बच्चो को काफी हद तक बचा सकते हैं:
आपके द्वारा किए गए ये छोटे छोटे प्रयास आपको जानलेवा बीमारियो से बचा सकता है तथा साथ ही साथ आपके आस पास की हवा को शुद्ध रखने मे कारगर हो सकता है।
डॉ अजय सिंह नागपुरे
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